Madhu varma

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लेखनी कविता - तुम्हारा चित्र -माखन लाल चतुर्वेदी

तुम्हारा चित्र -माखन लाल चतुर्वेदी 


मधुर! तुम्हारा चित्र बन गया
 कुछ नीले कुछ श्वेत गगन पर
 हरे-हरे घन श्यामल वन पर
 द्रुत असीम उद्दण्ड पवन पर
 चुम्बन आज पवित्र बन गया,
मधुर! तुम्हारा चित्र बन गया।

 तुम आए, बोले, तुम खेले
 दिवस-रात्रि बांहों पर झेले
 साँसों में तूफ़ान सकेले
 जो ऊगा वह मित्र बन गया,
मधुर! तुम्हारा चित्र बन गया।

 ये टिमटिम-पंथी ये तारे
 पहरन मोती जड़े तुम्हारे
 विस्तृत! तुम जीते हम हारे!
चाँद साथ सौमित्र बन गया।
 मधुर! तुम्हारा चित्र बन गया।

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